भगवान विष्णु कल से चार माह योगनिद्रा में रहेंगे, शिवजी जागरण करेंगेः वैदिक

इंदौर. 20 जुलाई से चार माह भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहेंगे. शिवजी जागरण करेंगे, आत्म शुद्धि का पर्व चातुर्मास प्रारम्भ होगा. विवाह आदि मंगल कार्यों पर विराम लगेगा. 15 नवंबर को देव प्रबोधनी एकादशी को देव जागेंगे.

यह बात भारद्वाज ज्योतिष व आध्यात्मिक शोध संस्थान के शोध निदेशक आचार्य पण्डित रामचन्द्र शर्मा वैदिक ने कही. आचार्या शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि 20 जुलाई मंगलवार आषाढ़ी देवशयनी एकादशी से 118 दिनों के लिए प्रजा के पालक भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बली के यहां योगनिद्रा में रहेंगे. पिछले वर्ष अधिकमास के चलते भगवान विष्णु 30 दिन अधिक अर्थात 148 दिनों तक योगनिद्रा में रहे. प्रजापालक भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में विश्राम करते है तब देवाधिदेव महादेव के पास के सृष्टि संचालन का दायित्व रहता है. देवशयन काल में विवाह आदि मङ्गल कार्य नहीं होते है. आत्मशुद्धि व अंतर्मन की शुद्धि का महापर्व चातुर्मास भी 20 जुलाई से शुरू होगा. 15 नवंबर देव प्रबोधनी एकादशी के साथ ही मङ्गल कार्यों का सिलसिला प्रारम्भ होगा.

आचार्य शर्मा वैदिक ने बताया कि 20 नवंबर शनिवार को विवाह का पहला शुभ मुहूर्त पंचांगकारों ने निर्धारित किया है. नवंबर में 5 व दिसम्बर में कुल चार विवाह के शुभ मुहूर्त पंचांगकारों ने निर्धारित किये है. इसके बाद श्राद्ध पक्ष, धनु संक्रांति व शुक्र का तारा अस्त होने से 22 जनवरी 22 से शुभ मुहूर्त है.

देवशयन काल मे शुभ कार्य क्यों है वर्जित

आचार्य पण्डित शर्मा ने बताया कि देवशयन काल में प्रत्यक्ष देव सूर्य व चन्द्रमा का तेज पृथ्वी पर कम मात्रा में पंहुचता है. साथ ही विष्णु स्वरूप सत्वगुण की कमी होने से शुभ कार्य वर्जित किये है. इस समयावधि में वर्षा ऋतु होने से जल की मात्रा अधिक होती है. अनेक जीव जंतु भी यत्र तत्र विचरण करते है जो नाना विध रोगों के कारक होते है.

देवशयन काल मे ब्रजयात्रा का है विशेष महत्व

आचार्य पण्डित शर्मा वैदिक ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास/ देवशयन काल मे ब्रजयात्रा का विशेष धार्मिक महत्व है. इस काल मे भूमण्डल के सभी तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते है. वर्ष में कुल 24 एकादशी होती है जिसमे दो एकादशी देव प्रबोधिनी व देव शयनी एकादशी का विशेष महत्व है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आषाढ़ी देव शयनी व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की देव उठनी(प्रबोधिनि)के नाम से प्रसिद्ध है.

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